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जानिए मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2022 की थीम और महत्‍व के बारे में

May 27, 2022
in INDIA
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नई दिल्ली: यूनिसेफ के अनुसार, हर महीने, दुनिया भर में लगभग 1.8 बिलियन महिलाओं को मासिक धर्म होता है. अधिकांश महिलाओं के लिए मासिक धर्म जीवन का एक सामान्य और स्वस्थ हिस्सा है. यूनिसेफ का कहना है कि लगभग आधी महिला आबादी – वैश्विक आबादी का लगभग 26 प्रतिशत – रिप्रोडक्टिव ऐज ग्रुप की है. फिर भी, जैसा कि सामान्य है, दुनिया भर में मासिक धर्म को कलंकित किया जाता है. मासिक धर्म, कलंक, वर्जनाओं और मिथकों के बारे में जानकारी का अभाव किशोर लड़कियों और लड़कों को इसके बारे में जानने और एक स्वस्थ आदत विकसित करने से रोकता है. परिणामस्वरूप लाखों लड़कियां, महिलाएं, ट्रांसजेंडर पुरुष और गैर-बाइनरी व्यक्ति अपने मासिक धर्म चक्र को सम्मानजनक, स्वस्थ तरीके से कंट्रोल करने में असमर्थ हैं. चुप्पी और वर्जना को तोड़ने, जागरूकता बढ़ाने और मासिक धर्म के आसपास के नकारात्मक सामाजिक मानदंडों को बदलने के लिए, दुनिया भर में 28 मई को मासिक धर्म स्वच्छता दिवस के रूप में मनाया जाता है.

इसे भी पढ़ें: Menstrual Hygiene Day 2022: मासिक धर्म स्वच्छता और सैनिटेशन के बीच संबंध

28 मई का महत्व 

2013 में जर्मन नॉन-प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन WASH यूनाइटेड द्वारा मासिक धर्म स्वच्छता दिवस की शुरुआत की गई थी. यह 28 मई को चिह्नित किया जाता है क्योंकि औसतन महिलाओं और लड़कियों को प्रति माह 5 दिन मासिक धर्म होता है और मासिक धर्म चक्र का औसत अंतराल 28 दिनों का होता है.

इसलिए 28-5 या 28 मई को दिन को चिह्नित करने के लिए चुना गया था.

इसे भी पढ़ें: Self Care For Mothers: मातृत्व का दबाव महिलाओं के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है: एक्‍स्‍पर्ट

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस 2022 की थीम

लोगों के बीच मासिक धर्म स्वच्छता प्रबंधन के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए हर साल इस दिन को एक विशेष विषय के साथ चिह्नित किया जाता है. इस वर्ष का विषय है ‘2030 तक मासिक धर्म को जीवन का एक सामान्य तथ्य बनाना’, जिसका उद्देश्य एक व्यापक लक्ष्य 2030 तक एक ऐसी दुनिया का निर्माण करना जहां मासिक धर्म के कारण कोई भी पीछे न रहे, को प्राप्त करने में योगदान देना है.

इस विजन के साथ थीम का उद्देश्य एक ऐसे समाज का निर्माण करना है जहां 2030 तक एक ऐसी दुनिया बनाना संभव हो जहां, मासिक धर्म के कारण कोई महिला या लड़की पीछे न रहे. इसका अर्थ है एक ऐसी दुनिया जिसमें हर महिला और लड़की को अपने मासिक धर्म को सुरक्षित, स्वच्छता से, आत्मविश्वास के साथ और बिना शर्म के कंट्रोल करने का अधिकार है:

– हर कोई अपनी पसंद के मासिक धर्म प्रोडक्‍ट को यूज और अफॉर्ड कर सकता है

– पीरियड स्टिग्मा इतिहास है

– मासिक धर्म के बारे में सभी को बुनियादी जानकारी है (इसमें लड़के और पुरुष भी शामिल हैं)

– हर कोई हर जगह पीरियड्स के अनुकूल पानी और स्वच्छता सुविधाओं का उपयोग कर सकता है

इसे भी पढ़ें: माताओं के लिए सेल्‍फ केयर: मदर्स डे पर रेकिट ने अपनी प्रतिबद्धता दोहराई, कहा- हमारे कार्यक्रमों का केंद्र रहेंगी माताएं

मासिक धर्म स्वच्छता दिवस को चिह्नित करने का महत्व

खराब मासिक धर्म स्वच्छता शारीरिक स्वास्थ्य जोखिम पैदा कर सकता है और इसे रिप्रोडक्टिव और यूरिन ट्रैक्‍ट के इंफेक्‍शन संक्रमण से जोड़ा गया है. यूनिसेफ

में कहा गया है कि पानी के साथ निजी सुविधाओं तक पहुंच और सुरक्षित कम लागत वाली मासिक धर्म सामग्री यूरोजेनिटल रोगों को कम कर सकती है. विश्व स्तर पर, 2.3 बिलियन लोगों के पास बुनियादी स्वच्छता सेवाओं की कमी है और कम विकसित देशों में केवल 27 प्रतिशत आबादी के पास घर पर पानी और साबुन से हाथ धोने की सुविधा है. यूनिसेफ कहता है कि कम आय वाले देशों में लगभग आधे स्कूलों में पर्याप्त पेयजल, स्वच्छता की कमी है जो लड़कियों और महिला टीचर्स के लिए उनके पीरियड्स मैनेज करने के लिए महत्वपूर्ण है. अपर्याप्त सुविधाएं लड़कियों के स्कूल के अनुभव को प्रभावित कर सकती हैं, जिससे वे पीरियड्स के दौरान स्कूल छोड़ सकती हैं.

भारत में मासिक धर्म स्वच्छता

2019-21 के नवीनतम राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण (NFHS) -5 के आंकड़ों के अनुसार, मासिक धर्म के दौरान सुरक्षा के स्वच्छ तरीकों का उपयोग करने वाली 15-24 वर्ष की आयु की महिलाओं का प्रतिशत शहरी क्षेत्रों में 89.4 और 72.3 प्रतिशत हो गया है. NFHS-4 (2015-16) में ग्रामीण क्षेत्रों में क्रमशः 77.3 और 57.6 प्रतिशत दर्ज किया गया है. सर्वेक्षण के आंकड़ों के अनुसार, मासिक धर्म के स्वास्थ्य के बारे में महिलाओं में जागरूकता में वृद्धि हुई है.

हालांकि, एक रिपोर्ट स्पॉट ऑन: भारत में मासिक धर्म स्वास्थ्य और स्वच्छता में सुधार, के अनुसार खराब मासिक धर्म स्वच्छता के कारण रिप्रोडक्टिव ट्रैक्ट इंफेक्‍शन की घटनाओं में 70% की वृद्धि देखी गई है. रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में अभी भी लड़कियां मासिक धर्म के कारण पूरे साल 20 फीसदी बार स्कूल जाने में अनुपस्थित रहती हैं. इसमें कहा गया है कि भारत में 88% मासिक धर्म वाली महिलाएं सैनिटरी पैड जैसे रैग्ज़, पुराने कपड़े, ऐश, लकड़ी की छाल, सूखे पत्ते, न्‍यूज पेपर, घास और प्लास्टिक के घरेलू विकल्पों का उपयोग करती हैं.

रिपोर्ट में भारत में खराब मासिक धर्म स्वच्छता के तीन प्रमुख कारणों पर प्रकाश डाला गया है और कहा गया है कि अगर इस पर ध्यान दिया जाए तो संख्या में आसानी से सुधार किया जा सकता है:

– जागरूकता में सुधार करना

– सूती कपड़े जैसे सैनिटरी नैपकिन के लिए लागत प्रभावी सामग्री प्रदान करना, जिसे यूनिसेफ जैसी प्रमुख अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा स्वीकार्य सैनिटरी सामग्री माना गया है.

– टॉयलेट और सेफ वॉटर जैसी उचित सुविधाएं सुनिश्चित करना





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